Friday, December 12, 2014

4 दिसम्बर 2014 का चित्र और भाव ...



किरण आर्य 
...... से 'अस्तित्व तक '

रोजमर्रा की आपधापी
अस्त व्यस्त सी जिन्दगी
चलती एक ढ़र्रे पर
आस निराश के साथ
चहलकदमी करती
थोड़ी सी धूल
थोड़े से थपेड़े
थोड़ी सी आशा
थोड़ा सा विश्वास
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी छाँव
थोड़ी सी चांदनी
थोड़े से सपने
थोड़ी सी किरचे
थोडा सा अवसाद
थोडा सा चिंतन
और ऐसे ही
थोडा थोडा करके
हो जाता जाने
कितना कुछ एकत्र
मन के घरौंदे में
इसी घिचपिच से
उपजते है विषाद
असमंजस और घृणा
जैसे अनगिनत भाव
बिखरने लगता है
बहुत कुछ और
घुटने लगते है प्राण
उखड़ने लगती है सांसे
मस्तिष्क में मचता है
तीव्र सा कोलाहल
और तब कानों को बंद कर
मन व्यग्र जो
चीख उठता है राह पाने को
बंद हो जाती आंखें स्वत ही
और यहीं जन्मता है मनन
आँखों के कोर भिगोता
जो सहेजता है
सारे बिखराव को सिरे से
और जो कुछ भी है
थोडा थोडा
उस सबको करता है प्रदान
पूर्णता
वैसे ही जैसे
गोधूली बेला में
उडती धूल में धुंधला जाता
पेड़ों का अक्स
सब होने लगता है धूमिल
और ऐसे में चन्द्र-किरण
धुंधलाते प्रतिबिम्ब को
अपनी रौशनी की चादर में
समेट करती प्रदान
अस्तित्व


नैनी ग्रोवर 
याद बहुत आता है

वो सर्द सुबह का आलम,
वो दर्ख्ख्तों का लहराना,
याद बहुत आता है..
ठंडी हवा में हाथ थामे,
तेरे साथ चलते जाना,
याद बहुत आता है..
दूर तक धुंधलके में,
चुपके से गुम हो जाना,
याद बहुत आता है..
मदहोश करती हुई ,
तेरी आँखों का मुस्कुराना,
याद बहुत आता है..!!



कुसुम शर्मा 
नए दिन की नई सुबह
*********************
खुले आसमान में दिख रहा सूरज का चेहरा
सूरज की किरणों के बीच हवाओ का बसेरा
नए दिन की नई सुबह का नया नया है अंदाज़
सारे दिन के लिए झोली में कुछ छुपे हुए हैं राज़
पंछियों का चहकना बिखेर रहा है संगीत आज
ख्यालो का यूं महकना , कुछ तो ख़ास है आज
तुझको मुझको हर किसी को मिलना है कुछ आज
तो आओ यारों ख़ुशी ख़ुशी कर लें दिन का आग़ाज़



K Shankar Soumya .
सवेरा

छँटा कुहासा हुआ सवेरा
नव आशा का नवल उजेरा
धूप धरा पर ज्यों ही आई
झटपट भागा दूर अँधेरा

नुतन दिवस के मृदुल दृश्य में
जागीं सब अलसाई आँखें
स्वप्न अधूरे पिरो रहे हैं
नवल चेतना वाले धागे

लगता जैसे वसुंधरा नें
नवयौवन को आज बिखेरा
धूप धरा पर ज्यों ही आई
झटपट भागा दूर अँधेरा



बालकृष्ण डी ध्यानी 
मौसम बदल रहा है

मौसम बदल रहा है
शाखों पर मचल रहा है
आने वाली सुबह कुछ कह रही है
ओस की बूंद अब जम रही है

एक नया आलम छाया
ना जाने कौन गा रहा है
झुरमुट पत्तों किरणों संग अठखेली है
सुबह ने तब आँखें खोली है

मन क्यों मचल रहा है
नग्मा बन पल पल उछल रहा है
सर्द सी तपन बड़ रही है
जाड़े की जो गर्मी चढ़ रही है

यौवन तन-मन गौते खा रहा है
कोहरा अपना मुंह छुपा रहा है
नवम्बर सितमबर का माह
कंबल में तुमको को बुला रहा है

मौसम बदल रहा है
शाखों पर मचल रहा है
आने वाली सुबह कुछ कह रही है
ओस की बूंद अब जम रही है



अलका गुप्ता 
~~~नव-प्रभात~~~

नई सुबह क्या आई कुहासा है देखो छंटता जाता |
गई निशा, हुई भोर उजाला चहुँदिश है बढ़ता जाता |
निशि का आँचल सरक रहा है वसुंधरा से धीरे धीरे ...
हर ओर चेतना के मंजर में अपनापन घुलता जाता ||

धुन पर मंगल गीतों की हर पंछी सुर अजमाता है |
मधुमय सुगंध पाकर मलयज भी हौले से मुस्काता है l
शाख़-शाख़ भी शीश हिला करती हो मानो अभिवादन...
अगवानी में नव-प्रभात की जग प्रहरी बन जाता है ||

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सवेरा~

शंख ध्वनि का गूंजता मधुर घोष
प्रभा - रशिम हरती अंधकार दोष
नभ से बिखरता स्वर्णिम प्रकाश
वर - वधु से सजे धरती व् आकाश

पुण्य प्रभात से सजी हुई मधुर बेला
इन्द्रधनुषी किरणों सा रंग है फैला
शाखों पर लगा गहनों का सा मेला
रोमांचित मन झूले सावन सा झूला

सौम्य रूप लिए पूषण की शीतलता
सूर्य की प्रकृति से दिखे सन्निकटता
उदृत होजब क्षितिज पर रूप बदलता
'प्रतिबिम्बित' होती भानू की चंचलता



Pushpa Tripathi 
ठण्ड में गगन --- रहता है मगन

गगन है मगन --- है कोहरे में खोया
रात के बाद -- जो सुबह भी सोया
लगता है बेपरवाह --- कुछ ध्यान नहीं
धरती पर दिनचर्या का तनिक भान नहीं l

बहरूपिया है गगन ---- हर मौसम रूप दिखाए
पौष में छिपता ---- ठण्ड भर, धूप चुराए
बारिश में काला ---- नभ नीला रंग बदलता
गगन है मगन धरती को अपना रौब दिखाता

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. नमस्कार सभी को मेरा ..........हर मित्र ने अपनी तरह से चित्र को देखा समझा और अपने भावो के माध्यम से सार्थकता प्रदान करने की कोशिश भी की, जो सचमुच काबिले तारीफ़ है ..........:)

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